स्वच्छता। Swacchta। अपने मन को स्वच्छ बनाएं। Apne man ko swacch Banaye

अपने मन को स्वच्छ बनाएँ,
देव गुरु की श्रद्धा लाएँ ।
जिनवाणी नित पढ़ें पढ़ाएँ,
तत्त्वों को समझें समझाएँ ।। टेक ॥।
‘शुद्धातम हूँ’ सहज निहारें,
देहादिक को भिन्न विचारें ।
मोहादिक ही दुःख के कारण,
भेदज्ञान से करें निवारण’ ।।
तत्त्व भावना नित ही भाएँ । अपने. ।। 1 ।।
पर द्रव्यों का दोष न देखें,
अपना सुख अपने में देखें ।
स्वयं स्वयं को भूल रहे हैं,
व्यर्थ अरे हैरान रहे हैं ।
नहिं बाहर उपयोग भ्रमाएँ ।। अपने. ।। 2 ।।
महाभाग्य से अवसर आया,
जिनवर का उपदेश सुहाया।
अनेकान्तमय वस्तु स्वरूप,
फिर भी ज्ञान मात्र चिद्रूप ॥
हम सम्यक् श्रद्धान जगाएँ ।। अपने. ।। 3 ।।
मिथ्या बाह्य प्रपंच सभी,
ध्रुव आतम भगवान अभी ।
द्रव्यदृष्टि से सहज दिखावे,
मोह महातम सहज नशावे ।।
पद निर्ग्रंथ सहज प्रगटावें ।। अपने. ।। 4 ।
साध्य सिद्धि नहीं अन्य प्रकार,
हो मन में नहीं कभी विकार ।
घोर उपसर्ग भले ही हों,
कभी न पथ से विचलित हों ।।
अपना जीवन सफल बनावें ।। अपने. ।। 5 ।।

उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ

निवारण= दूर करना

पुस्तक का नाम:" प्रेरणा " ( पुस्तक में कुल पाठों की‌ संख्या =२४)
पाठ क्रमांक: ११
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’