सुन चेतन इक बात हमारी, तीन भुवन के राजा ।
रंक भये बिललात फिरत हो, विषयनि सुख के काजा ।।सुन चेतन…।।टेक।।
चेतन तुम तो चतुर सयाने, कहाँ गई चतुराई ।
रंचक विषयनिके सुखकारण, अविचल ऋद्धि गमाई ।।1।।सुन चेतन…।।
विषयनि सेवत सुख नहिं राई, दुख है मेरु समाना ।
कौन सयानप कीनी भौंदू, विषयनि सों लपटाना ।।2।।सुन चेतन…।।
इस जग में थिर रहना नाहीं, तैं रहना क्यों माना ।
सूझत नाहिं कि भांग खाइ है, दीसै परगट जाना ।।3।।सुन चेतन…।।
तुमको काल अनन्त गये हैं, दुख सहते जगमाहीं ।
विषय कषाय महारिपु तेरे, अजहूँ चेतत नाहीं ।।4।।सुन चेतन…।।
ख्याति लाभ पूजाके काजैं, बाहिज भेष बनाया ।
परमतत्त्व का भेद न जाना, वादि अनादि गँवाया ।।5।।सुन चेतन…।।
अति दुर्लभ तैं नर भव लहकैं, कारज कौन समारा ।
रामा रामा धन धन साँटैं, धर्म अमोलक हारा ।।6।।सुन चेतन…।।
घट घट साईं मैंनू दीसै, मूरख मरम न पावे ।
अपनी नाभि सुवास लखे विन, ज्यों मृग चहुँ दिशि धावै ।।7।।सुन चेतन…।।
घट घटसाई घटसा नाईं, घट सों घट में न्यारो ।
घूंघटका पट खोल निहारो, जो निजरूप निहारो ।।8।।सुन चेतन…।।
ये दश माझ सुनैं जो गावै, निरमल मनसा करके ।
`द्यानत’ सो शिवसम्पति पावै, भवदधि पार उतरके ।।9।।सुन चेतन…।।
Artist- कवि श्री द्यानतराय जी