सोते-सोते ही निकल गयी सारी | sote-sote me nikl gyi sari

सोते-सोते ही निकल गयी सारी जिन्दगी;
सारी जिन्दगी तेरी प्यारी जिन्दगी।
बोझा ढोते ही निकल गयी ॥टेक॥

जन्म लेते ही इस धरती पर तूने रुदन मचाया,
आँखे भी न खुलने पायी, भूख-भूख चिल्लाया;
रोते-रोते ही निकल गयी सारी जिन्दगी ॥१॥

खेलकूद में बचपन बीता, यौवन पा बौराया,
धर्म कर्म का मर्म न जाना, विषय भोग लपटाया;
भोगों भोगों में निकल गयी सारी जिन्दगी ॥२॥

धीरे-धीरे बढ़ा बुढ़ापा, डगमग डोले काया;
सबके सब रोगों ने देखो डेरा खूब जमाया।
रोगों रोगों में निकल गयी सारी जिन्दगी ॥३॥

जिसको तू अपना समझा था, वह दे बैठा धोखा;
प्राण गये फिर जल जायेगा ये माटी का खोका।
खोका ढोने में निकल गयी सारी जिन्दगी ॥४॥