सोचो जरा कहता क्या है जैन धर्म, बड़ी मुश्किल से पाया है मानुष जन्म।
सिद्ध सी सभी की आत्मा, सिद्ध सी सभी की आत्मा |
पाया मानुष जन्म तो, क्यों इसको तू गंवाता है ।
उठकर सुवेरे रोज तू, मन्दिर क्यों नही जाता है ॥
रोज तु मन्दिर को जा, प्रभु के दर्शन को पा।
अपना कल्याण कर, तत्त्व की पहचान कर ॥1॥
रात्रि भोजन त्यागकर, पानी पीना छानकर।
जीवों परतू दयाकर, दुःख से बेड़ा पारकर॥
हिंसा को त्यागकर, अहिंसा को पालकर।
प्राणी को उपदेश दो, जीओ और जीने दो॥2॥
आतम की पहचान कर, सप्त व्यसन का त्यागकर।
मन को अपने सम्हाल ले, सम्यक का तू ध्यानकर।
ज्ञान की ज्योति जला, कुछ तो कर ले भला।
णमोकार मन्त्र से, पापों का नाशकर ॥3॥
रचयिता - पं. श्री सुरेन्द्र कुमार जी ‘पंकज’, छिंदवाड़ा