जीव द्रव्य हैं अनन्त, पुदूगल अनन्तानन्त ।
धर्म अधर्म आकाश एक एक जानो।।
कहे जिन आगम से समझो सुयुक्ति से।
काल द्रव्य असंख्यात लोक प्रमाण मानो ।।
विश्व है इन्हीं छह द्रव्यों का मेला।
चेतना स्वरूप जीव सदा है अकेला।।
सदा है अकेला किन्तु नहीं अधूरा।
प्रभु है स्वभाव से ही सदा काल पूरा।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी