शिखर पे कलश | Sikhar pe kalash

शिखर पे कलश चढ़ाओ म्हारा साथी।
मोक्ष-महल में आओ म्हारा साथी॥

शुद्धातम को लक्ष्य बनाकर,
आतम में अपनापन लाकर।
समकित नींव भराओ म्हारा साथी ॥१॥

नय-प्रमाण दीवार बनाओ,
अनेकान्त का रङ्ग चढ़ाओ।
चारित्र छत डलवाओ मेरे साथी ॥२॥

रत्नत्रय का शिखर बनाओ,
केवलज्ञान का कलश चढ़ाओ।
मोक्षमहल में आओ म्हारा साथी ॥३॥