श्री विमलनाथ स्तुति | Shri Vimalnath Stuti

हे विमलनाथ लख विमल स्वरुप तुम्हारा |
स्वयमेव दिखावे चित्स्वरूप अविकारा || टेक ||

है सहज चतुष्टयमय शाश्वत परमातम |
है नित्य निरंजन शुद्ध बुद्ध शुद्धातम ||
ध्रुव अचल अनुपम ध्येय रूप है आतम |
मंगल स्वरुप है स्वयं सिद्ध शुद्धातम ||
अद्भुत महिमा मंडित है जाननहारा || १ ||

एकत्व - विभक्त सहज स्वाभाविक सोहे |
है वचनातीत अचिन्त्य सहज मन मोहे ||
पक्षातिक्रांत अनुभूति रूप सुखकारी |
बस चित्स्वरूप तो चित्स्वरूप अविकारी ||
होकर अन्तर्मुख नाथ प्रत्यक्ष निहारा || २ ||

धनि घड़ी दिवस - धनि सहज प्रभु को पाया |
जिनवर दर्शन कर, फूला नहीं समाया ||
प्रभुवर तुम ही हो साँचे मम उपकारी |
हो भाव - नमन चरणों में प्रभु बलिहारी ||
होवे तुम सम निर्मल पुरुषार्थ हमारा || ३ ||

हे नाथ जगत के स्वांग दिखें सब फीके |
अभिलाष नहीं कुछ शेष पूर्णता दीखे ||
निर्ग्रन्थ रहूँ निर्ग्रन्थ रूप निज भाऊँ |
स्वामिन ! अविरल निज में ही मग्न रहाऊँ ||
मुक्ति प्रगटे स्वयमेव स्वरुप सम्हारा || ४ ||

  • बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’
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