श्री वासुपूज्यनाथ स्तुति | Shri Vasupujyanath Stuti

हे बाल ब्रहम्चारी इन्द्रादिक पूजित वासुपूज्य स्वामी |
निज महिमा दर्शायी जग में सर्वोत्कृष्ट त्रिभुवन नामी ||

जाना मैंने निज का निज से, बढ़कर जग में आराध्य नहीं |
मैं व्यर्थ भटकता मूढ़ बना, निज से बाहर सुख साध्य नहीं ||

मैं स्वयं पूर्ण हूँ अपने में, अब अन्य नहीं कुछ भी चाहूँ |
अंतर में सुख प्रत्यक्ष लखा, निज अंतर में ही रम जाऊँ ||

मम ज्ञान मात्र चैतन्य भाव में, शक्ति अनंत उछलती हैं |
प्रभु स्वयं शीश झुक जाता है, पाई निज में ही तृप्ति है ||

  • बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’
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