भगवन सुपार्श्व प्रभुता स्व पार्श्व, मुझको प्रतीति अब आयी है |
है व्यर्थ भटकना बाहर में, प्रभु झूठी भ्रान्ति पलाई है || १ ||
प्रभुता आत्मा में नहिं होती, तो कैसे प्रगट हुई स्वामी |
पर, प्रगट हुई साक्षात् दिखे, तव परिणति में अन्तरयामी || २ ||
मैं भी अंतर बल द्वारा प्रभु, निज की महिमा प्रगटाऊँगा |
रागादि स्वयं उत्पन्न न हों, जब निज में ही रम जाऊँगा || ३ ||
कर्मादिक भी खुद भग जावें, परमात्म दशा हो जायेगी |
मैं सविनय शीश झुकाता हूँ, कब धन्य घड़ी वह आयेगी || ४ ||
- बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’