श्री श्रेयांसनाथ स्तुति | Shri Shreyansnath Stuti

यह श्रेय आपको ही स्वामी, मम परम श्रेय दर्शाया है |
अश्रेय रूप रागादि विकारों का, भ्रम जाल नशाया है ||

मंगलमय मंगलकरन प्रभो, बस वीतराग विज्ञान कहा |
जिसका आश्रय रागादि शून्य, चिन्मात्र एक शुद्धात्म अहा ||

जग में वे सभी महान हुए, जिन वीतराग विज्ञान गहा |
अज्ञान राग - द्वेषादि विकारों से, चहुँगति में दुख लहा ||

हो गया आज निश्चय प्रभुवर, मुझमे रागादि क्लेश नहीं |
कल्याण धाम परमाभिराम, पाई मैं निर्मल दॄष्टि यहीं ||

अब यावत रागादि आवें, मैं निज में नहीं मिलाऊँगा |
नव तत्वों से अति भिन्न एक, चिन्मात्र रूप निज ध्याऊँगा ||

मैं करुँ वंदना यही भावना, निज में ही थिरता पाऊँ |
संकल्प विकल्प मिटें झूठे, तुम सम ही प्रभुता प्रगटाऊँ ||

  • बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’
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