पारस प्रभु की छवि सुखकारी, वीतराग मूरत मनहारी || टेक ||
पद्मासन अरु नासा दृष्टी, धर्मामृत की करती वृष्टि |
अद्भुत मुद्रा है हितकारी, पारस प्रभु की छवि सुखकारी || १ ||
निरखत परमानन्द उपजावे, भेद ज्ञान उर में प्रगटावे |
सब संक्लेश मिटें दुखकारी, पारस प्रभु की छवि सुखकारी || २ ||
प्रभु की महिमा कैसे गावें, इन्द्रादिक भी पार न पावें |
चरित नाथ का मंगलकारी, पारस प्रभु की छवि सुखकारी || ३ ||
मन में जिनवर यही भावना, करें आप सम आत्मसाधना |
साम्यभाव हो मंगलकारी, पारस प्रभु की छवि सुखकारी || ४ ||
चित्त मलिन नहीं होने पावे, निरतिचार संयम प्रगटावे |
प्रभु चरणों में ढोक हमारी, पारस प्रभु की छवि सुखकारी || ५ ||
ऐसा निश्चल ध्यान लगावें, कर्म कलंक समूल नशावें |
पंचमगति पावें अविकारी, पारस प्रभु की छवि सुखकारी || ६ ||
दिव्य शांतिमय तीर्थ आपका, परम शांत है तत्व आपका |
हो प्रभावना मंगलकारी, पारस प्रभु की छवि सुखकारी || ७ ||
Artist: बाल ब्र. रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’