श्री नेमिनाथ जिनपूजन । Shri NemiNath Bhagwan Puja

      श्री नेमिनाथ जिनपूजन

               (रोला)

नेमिनाथ जिनराज, दर्शकर चित हुलसाया,
ज्ञानानन्दमय देव ! सहज निजपद दरशाया।
लख अनुपम वैराग्य आपका त्रिभुवन नामी,
जगा सहज बहुमान विराजो हृदय स्वामी ।।

              (दोहा)

बाल ब्रह्मचारी प्रभो, अद्भुत प्रभुतावान ।
पूजें हर्ष विभोर हो, भाव सहित भगवान ॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम्
ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्
ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्

ज्ञानसरोवर का सम्यक् जल लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय जन्म-जरा-मृत नाश करन को, पूजूँ गुण गाऊँ हरषाय ॥
धन्य धन्य नेमीश्वर स्वामी, बालयती हो शिवपद पाय । आतमनिधि दातार जिनेश्वर, भाव यही निजपद प्रगटाय ॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय जन्म- जरा मृत्यु- विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।

दाह निकंदन शीतल चन्दन, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय ।
सहज भाव शीतल नित वर्ते, पूजूं गुण गाऊँ हरषाय ।। धन्य…॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।

अमल अखंडित अनुपम अक्षत लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय
निज अक्षय पद प्राप्त करन को, पूजूँ गुण गाऊँ हरषाय ॥ धन्य…।।

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा

धर्म वृक्ष 'के पुष्प 'शीलमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय काम व्यथा निर्मूल करन को, पूजूँ गुण गाऊँ हरषाय ॥ धन्य…॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाण - विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।

निज रस पूरित नैवेद्य सुखमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय नाश करन को दोष क्षुधादि पूजूं गुण गाऊँ हरषाय ॥ धन्य…॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा

रत्न दीप सुन्दर सुज्ञानमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय ।
मोह तिमिर के नाश करन को, पूजूँ गुण गाऊँ हरषाय ।।
धन्य धन्य नेमीश्वर स्वामी, बालयती हो शिवपद पाय।
आतमनिधि दातार जिनेश्वर, भाव यही निजपद प्रगटाय ॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।

अहो गंध दशधर्ममयी मैं, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय
अष्ट कर्म निर्मूल करन को पूजूं गुण गाऊँ हरषाय ॥ धन्य…॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।

प्रासुक फल मैं सहज भावमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय ।
महामोक्ष फल प्राप्त करन को, पूजूँ गुण गाऊँ हरषाय ॥ धन्य…॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

अर्घ्य अनूपम जिनभक्तिमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय
अविनाशी अनर्घ्य पद पाऊँ, पूजूं गुण गाऊँ हरषाय ॥ धन्य…॥

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

     पंचकल्याणक अर्घ्य

       (उपेन्द्रवज्रा )

  तर्ज मैं हूँ पूर्ण ज्ञायक..)

कार्तिक सुदी षष्ठमि गर्भ माँहीं आए प्रभो सर्व जन सुखपाहीं ।
वर्षे रतनराशि महिमा अपारी, करें देवियाँ मातु सेवा सुखारी ॥

ॐ ह्रीं कार्तिक शुक्ल षष्ठम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा

श्रावण सुदी षष्ठमि सुखकारी, जन्में जिनेश्वर जग दुःखहारी ।
इन्द्रादि ने जन्म अभिषेक कीना, करें भावना जन्म हो ना नवीना ॥

ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ल षष्ठम्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा

तजो ब्याह को स्वाँग दीक्षा सुधारी, अभवरूप निर्ग्रन्थ वृत्ति सम्भारी ।
छटे श्रावणी सित जजों नाथ चरणं, दिखे विश्व में धर्म ही सत्य शरणं ॥

ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ठम्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा

धरो ध्यान जिनवर अचल अविकारी, नशे घातिया कर्म सब दुःखकारी ।
आश्विन सुदी प्रतिपदा सुखरूपं, जजू नेमि पायो सु अर्हत् स्वरूपं ॥

ॐ ह्रीं अषाढ़ शुक्लप्रतिपदायां ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि. स्वाहा

सितषाढ़ अष्टमि सु निर्वाण पायो, गिरनार पर्वत सु तीरथ कहायो ।
अहो हम स्वयंसिद्ध निजपद निहारें, करें अर्चना भाव अपना सुधारें ।।

ॐ ह्रीं आषाढशुक्ल अष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा

               जयमाला

                 (दोहा)

शंख चिन्ह चरणों लसे शोभे श्याम शरीर
निरावरण विज्ञानमय, निश्चय से अशरीर ॥

(तर्ज: अहो जगत गुरुदेव…)

नेमिनाथ जिनराज तिहुँ जग मंगलकारी ।
अनन्त चतुष्टयरूप, देव परम अविकारी ॥ टेक ॥
प्रभु पंचमभव पूर्व शुद्धातम पहिचाना,
धरि जिनदीक्षा आप पायो स्वर्ग विमाना ।
फिर तीजे भव माँहिं सोलहकारण भाई,
धर्मतीर्थ कर्तार प्रकृति पुण्य बंधाई ||
फेर अहमिन्द्र तह तें आप पधारे,
समुद्रविजय के लाल तुम ही शरण हमारे ।
दीन पशु लख आप ब्याह तजो दुखकारी,
हो विरक्त शिवहेतु निर्ग्रन्थ दीक्षा धारी ॥
कियो काम चकचूर निज बल से ही स्वामी,
तिहुँ जग पूज्य ललाम हुए जितेन्द्रिय नामी ।
क्षपक श्रेणि चढ़ देव परमातम पद पायो,
धनपति ने तब आय समवशरण सु रचायो ।
झलकें लोकालोक युगपद् परिणति माँहीं,
तदपि विकल्प न लेश रमे सहज निज माँहीं
नशे अठारह दोष आत्मीक गुण सोहे,
आयुध अम्बर नाहिं सौम्य दशा मन मोहे ॥
खिरी दिव्यध्वनि देव दिव्यतत्त्व दर्शायो,
समयसार अविकार सारभूत प्रगटायो ।
परलक्षी सब भाव दुखकारण बतलाये,
रत्नत्रय सुखरूप सुखकारण दर्शाये ।।
जगत विभव निस्सार हमको भी प्रभु लागे,
मिटा मोह दुखकार तुम चरणों के आगे
त्यागूँ जगत प्रपंच पुण्य-पाप दुखकारी,
भाव यही जिनराज पाऊँ पद अविकारी ||

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

            (घत्ता)

जय नेमि जिनेश्वर, साँचे ईश्वर, शील शिरोमणि जितमारं ।
भव भय हर्तारं धर्माधारं, जयवन्तो शिवदातारं ॥

॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥

रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

Source: अध्यात्म पूजांजलि ,जिनेंद्र आराधना संग्रह