श्री नेमीकुंवर गिरनारी चाले | shri nemikuvar girnari chale

श्री नेमीकुंवर गिरनारी चाले, मुक्तिवधू को ब्याहें।
रङ्गराग से भिन्न निराले शुद्धातम को चाहें ॥

भाएँ बारह भावना, समझे जगत असार ।
शुद्धातम चिन्तन करें, वेश दिगम्बर धार ॥
जिन चैतन्य सुधारस पीते, पीते नहीं अघावें ॥१॥

पञ्चमहाव्रत अरु समिति, पञ्चेन्द्रिय जय धार।
षट् आवश्यक पालते, सातों गुण सुखकार।
अन्तर बाहर संयम धारे, गुण श्रेणी अवगाहें ॥२॥

विष सम पञ्चेन्द्रिय विषय की, चित में नहिं चाह।
शुद्धातम में लीन हो, गही मुक्ति की राह ।।
क्षायिक चारित्र कंकण बाँधे, तिल तुष भी नहिं चाहें ॥३॥

क्षपक श्रेणी चढ़कर लहें, मुक्ति महल का द्वार ।
सहज शुद्ध चैतन्य का, अवलंबन ही सार।
महा मोह क्षय शीघ्र करेंगे, अनंत चतुष्टाय धारें ।।४।।