नंदीश्वर पूजूँ भक्ति, सहित सुखकार |
जिनमंदिर जिन प्रतिमा देखूँ, अपने ज्ञान मंझार | |
जाने की शक्ति नहिं यद्यपि, अंतर शक्ति अपार |
अंतर दृष्टि से ही पाऊं, तृप्ति अपरम्पार | | १
आगम चक्षु से मैं जानूँ, चिंतू प्रभु गुण सार |
चिंतत भेदविज्ञान जगे, अर दीखे जगत असार | | २
प्रभु सम अपना रूप न जाना, भ्रमत फिरयो संसार ।
वन्दत दुःख पलायो तत्क्षण, भासे निज पद सार || ३
बावन जिन्मन्दिर अकृत्रिम, अनुपम नित अविकार |
त्यों ही अकृत्रिम शुद्धातम, गुण अनंत भंडार ||४
धन्य घड़ी प्रत्यक्ष निहारूँ, प्रभु तेरा उपकार |
तुम सम ही निज में रम जाऊं, आवागमन निवार ||५