जय स्याद्वाद के नायक हो, जिन मुक्तिमार्ग विधायक हो |
नमिनाथ प्रभो मैं नमन करूँ, शुद्धात्म तत्व दरशायक हो || टेक ||
सकल द्रव्य के गुण अनंत, पर्याय अनंत सुजानत हो |
प्रभु धन्य धन्य निज में तन्मय, वहाँ इष्ट अनिष्ट न ठानत हो || १ ||
तुम सम ही निज में रम जाऊँ, बस यही भावना होती है |
समतामय शांतिमयी जीवन प्रति, परम प्रतीति जगती है || २ ||
में स्वयं पूर्ण हूँ हे जिनवर, पर की न रही अब अभिलाषा |
चरणों में शत शत वंदन है, मेरा प्रभु मुझमें ही पाया || ३ ||
- बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’