श्री मल्लिनाथ स्तुति | Shri Mallinath Stuti

हे मल्लि जिनवर हो जितेन्द्रिय, आप सहज स्वाभाव से |
यौवन समय जीता मदन, निज ब्रह्मचर्य प्रभाव से || १ ||

पाकर अतीन्द्रिय परमसुख, प्रभु तृप्त निज में ही हुए |
निजभाव घातक भोग - दुःख, स्वीकार ही प्रभु नहीं किए || २ ||

हा ! गर्त में गिरकर तड़पना, और पछताना अरे !
पीकर हलाहल कौन ज्ञानी, आश जीवन की करे || ३ ||

निस्सार निज के शत्रु सम, लख भोग इन्द्रिय परिहरूँ |
अरु इन्द्रियों से ज्ञान निज, बर्बाद नहीं प्रभुवर करूँ || ४ ||

आनंद भोगों में नहीं, निश्चय परम श्रद्धान है |
आनंद का सागर स्वयं, शुद्धात्मा भगवान है || ५ ||

बातों में जग की मैं न आऊँ, अब न धोखा खाऊँगा |
पावन परम पुरुषार्थ करके, शीघ्र निज पद पाउँगा || ६ ||

नवतत्व के भीतर निजात्मा, परम मंगल रूप है |
उपयोगरूप अमूर्त चिन्मय, त्रिजग में चिद्रूप है || ७ ||

सर्वोत्कृष्ट अमल अबाधित, परमब्रह्म स्वरुप है |
निज में ही रम जाऊँ सुपाऊँ, ब्रह्मचर्य अनूप है || ८ ||

आदर्श पथ दर्शक शरण विभु, एक तुम ही हो अहा |
तव दर्श करके नाथ मुझमें, शक्ति निज जागी महा || ९ ||

अब न किंचित भय अहो, आनंद का नहिं पार है |
संकल्प एवंभूत हो, बस वंदना अविकार है || १० ||

Artist: बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’


Singer: @Shruti

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@Sulabh @jinesh bhaiya, meaning of this phrase?

Tatvarth sutra ji k pehle adhyaya m 7 nay m se last h ‘Evumbhut nay’ jiske anusar ‘jiski baat chal rahi h us roop parinaman bhi vartaman m ho…’
Yaha bhi hamara nij m hi ramne jamne roop sankalp, parinaman roop ho, yahi bhavana bhayi ja rahi h

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