श्री महावीर जिन - स्तवन | Shri Mahavira Jin Stavan

श्रीमान महावीर प्रभो मुनीन्दो,
देवादि देवेश्वर ज्ञान सिन्धो,
स्वामिन तुम्हारे पद पद्म का हो,
प्रेमी सदा ही यह चित्त मेरा || १ ||

तत्वार्थश्रद्धान सदैव धारूं,
दो शक्ति हो उत्तम शील मेरा ;
सन्मार्ग पै मैं चलते न हारूं,
हो ज्ञान चारित्र विशुद्ध मेरा || २ ||

स्वामिन तुम्हारी यह शांत मुद्रा,
किसीकी लगाती हिय में न मुद्रा ;
कहे इसे क्या यह बुद्धि क्षुद्रा,
स्वीकारिये नाथ प्रणाम मेरा || ३ ||

प्रभो तुम्हीं हो निकटोपकारी,
प्रभो तुम्हीं हो भवदुःखहारी;
प्रभो तुम्हीं हो शुचि पंथचारी,
हो नाथ साष्टांग प्रणाम मेरा || ४ ||

जो भव्य पूजा करते तुम्हारी,
होती उन्ही की गति उच्च प्यारी ;
प्रसिद्ध है ‘दादुर फूल’ वारी,
सम्पूर्ण है निश्चय नाथ मेरा || ५ ||

मेरी प्रभो दर्शन शुद्धि होवे,
सदभावना पूर्ण समृद्धि होवे ;
रत्नत्रय की शुद्ध सिद्धि होवे,
सद्बुद्धि पै हो अधिकार मेरा || ६ ||

आया नहीं गौतम विज्ञ जौलों,
खिरी न वाणी तव दिव्य तौलौं ;
पीयूष से पात्र भरा स तौलौं,
मैं पात्र होउं अभिलाष मेरा || ७ ||

प्रभो तुम्हें ही दिन रात ध्याऊं,
सदा तुम्हारे गुणगान गाऊं ;
प्रभावना खुब विशिष्ट होओ,
कल्याण होवे सब भांति मेरा || ८ ||

श्री वीर के मारग पै चलें जो,
श्री वीर पूजा मन से करें जो ;
सदभव्य वीर स्तवन को पढ़ें जो,
वे लब्धियां पा सुखपूर्ण होवे || ९ ||

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