श्री बाहुबली स्तुति | Shri Bahubali Stuti

प्रभु बाहुबली ऐसा बल हो || टेक ||

जीतूँ मैं मोह महाभट को, श्रद्धान सहज ही सम्यक् हो |
निज-पर का भेद-विज्ञान रहे, अंतर शुद्धातम अनुभव हो || १ ||

जड़रूप सदा आकुलतामय, भोगों का नहिं आकर्षण हो |
अध्रुव अशरण अरु दुःखरूप, परिग्रह प्रति नहिं समर्पण हो || २ ||

हो ज्ञान सहज वैराग्यमयी, वैराग्य ज्ञानमय जिनवर हो |
संकल्प सहित निर्ग्रन्थ मार्ग में, विचरण स्वामी सत्वर हो || ३ ||

उपसर्ग परिषह चाहे हों, परिणाम सदा समतामय हों |
दशलक्षण प्रगट सदा वर्तें, आराधन नित मंगलमय हो || ४ ||

हो ऐसा निश्चल आत्मध्यान, कर्मों का कर्मों में लय हो |
चैतन्य विभूति ध्रुव अनुपम, प्रगटे भक्ति का प्रभु फल हो || ५ ||

प्रभु का स्वरूप मन को भाया, ऐसी ही परिणति मेरी हो |
पुरुषार्थ जगे हो सफल भावना, विभुवर सम्यक् वंदन हो || ६ ||

रचयिता: श्री ब्र. रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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