श्री अनंतनाथ स्तुति | Shri Anantnath Stuti

महाभाग्य से दर्शन पाया, प्रभु अनंत अम्लान |
तुम्हें देखते दीखे अपना आतम देव महान || १ ||

अमृतमय है परम अलौकिक, परमानन्द की खान |
परम पारिणामिक ध्रुव ज्ञायक, है शाश्वत भगवान || २ ||

ज्ञायक आश्रय से ही प्रगटे, रत्नत्रय अम्लान |
अकृत्रिम परमातम ज्ञायक, अक्षय प्रभुतावान || ३ ||

अपने धर्मो में व्यापक विभु, अद्भुत वैभववान |
है समर्थ निज की रचना में, निज से वीरजवान || ४ ||

ध्रुव मंगल है लोकोत्तम है, अनन्य शरण गुण खान |
सन्मुख आते अहो जिनेश्वर, हुआ सहज श्रद्धान || ५ ||

अमृतमय है रूप आपका, अमृतमय परिणाम |
अमृतमय मुद्रा है जिनवर, वचनामृत सुख खान || ६ ||

साँचे देव दिया है प्रभुवर, मुक्ति मार्ग का दान |
हम सम्यक अनुगामी होकर, करें स्व - पर कल्याण || ७ ||

  • बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’
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