श्री अकंपनाचार्यादि ७०० मुनिपूजा | Shri Akampanacharyaaadi 700 Muni Puja

(सलूनो पूजा)

(अडिल्ल छंद)
श्री अकंपन मुनि आदि सब सातसै,
कर विहार हस्थनापुर आये सातसै;
तहाँ भयो उपसर्ग बडौ दुःखकार जू,
शांति भावसे सहन कियौ मुनिराजजु।
मिती सु पंद्रस सावन शुक्ल प्रमानिये,
ध्यानारूढ सु तिष्ठ सर्व मुनि मानिये;
हुओ उपसर्ग जु दूर धन्य घडी आज जी,
तिन प्रति शीश नवाय पूज्य मुनिराजजी।
तिनकी पूजा रचूं भाव अरु भक्ति से,
दिवस सलूनो भयो इसी यह युक्तिसे;
आह्वानन स्थापन सत्रिधिकरण जी,
तिष्ठ गुरु सब आय करूं पद सेव जी।

ॐ ह्रीँ श्रीअकंपनआचार्यआदि सातसौ मुनिभ्यः अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् इति आह्वाननम् । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनम्,-अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् सन्निधिकरणम्।

(जोगीरासा-चाल)
शीतल प्रासुक उज्ज्वल जल ले कंचन झारी लाऊं,
जन्म जरा मृत्यु नाश करनको तुम्हरे चरण चढाऊं;
श्री अकंपन गुरु आदि दे मुनि सातसैं जानो,
तिनकी पूज बूं सुखकारी भव भव के अघ हानो।
ॐ ह्रीँ श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्य: जलं नि०

चंदन केशर मिश्रित लेकर नीको चंदन लाऊं;
भव आताप जु दूर करनको गुरुके चरन चढाऊं।
श्री अकंपन गुरु आदि दे मुनि सातसै जानो,
तिनकी पूज रचूं सुखकारी भव भव के अघ हानो।
ॐ ह्रीँ श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः चंदनं नि०

चंद किरण सम उजज्वल अक्षत भाव भक्तिसे लीने;
पुंज मनोहर श्रीगुरु सन्मुख सरधाकर जु करीने। श्री अकंपन०
ॐ ह्रीँ श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः अक्षतान् नि०

बेल चमेली श्री गुलाबके ताजे पुष्प सु लाऊं;
कामबाणके नाश करन को श्री गुरु चरण चढाऊं। श्री अकंपन०
ॐ ही श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः पुष्पं नि०

गूंझा फैनी मोदक लाडू ताजे तुरत बनाऊं;
श्री गुरुवर के चरण चढाकर हर्ष हर्ष गुण गाऊं। श्री अकंपन०
ॐ ही श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः नैवेद्यं नि०

घृत कपूर री उत्तम ज्योति स्वर्ण कटोरी धारूं;
श्री मुनिवर की करू आरती मोहकर्म को जारूं। श्री अकंपन०
ॐ ही श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः दीपं नि०

धूप सुगंध सुवासित लेकर धूपायनमें खेऊ;
अष्ट करमके नाश करनको आनंदमंगल देऊ। श्री अकंपन०
ॐ ही श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः धूपं नि०

लोंग इलायची श्रीफल पिस्ता अरु बादाम मंगाऊं;
सेव सन्तरा खट्टा मीठा श्रीगुरु चरण चढाऊं। श्री अकंपन०
ॐ ह्रीँ श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः फलं नि०

जल फल आठों दरव मिलाकर भावभक्ति से लाया,
हे गुरु हमको भवसे तारो तातें चरण चढाया।
श्री अकंपन गुरु आदि दे मुनि सातसै जानो,
तिनकी पूज वू सुखकारी भव भव के अघ हानो।
ॐ ही श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः अर्घ नि०

जयमाला

(दोहा)
श्री अकंपन मुनि आदि सब, सप्त सैकडा जान;
तिनकी य जयमाल सुन, भाषा करूं बखान। १

(चौपाई)
जीवदया पालें गुरु स्वामी, दे धर्मोपदेश बहुनामी;
छहों कायकी रक्षा पालें, तप कर आठों कर्मको टाले। २
झूठ न रंचमात्र मुख बोलों, जो मन होय वचन सो खोलें;
महा सत्यव्रत के मुनि धारी, तिनके पायन धोक हमारी। ३
तृण जल भी अदत्त नहिं लेवें, धन कंचन सब तृण सम जोवें;
महा अचौर्यव्रत गुरु धारी, तिनके पायन धोक हमारी। ४
अठारह सहस शीलके भेदा, निर्भय धारत हो स अखेदा;
शील महाबतके मुनि धारी, तिनके पायन धोक हमारी। ५
चौबीस भेद परिग्रह गाये, सर्व त्याग वनवास कहाये;
परिग्रह-त्याग महाव्रत धारी, तिनके पायन धोक हमारी। ६

(पद्धरी छंद)
सु भावत भावन बारह नित्त, विचारत धर्म सदा सु पवित्त;
जय म्यारह अंग सु पढत पाठ, संसार भोगका त्याग सु ठाठ। ७
पंचेन्द्री दमन करें महान, मन वचन काय कर शुद्ध ध्यान,
जय मुनिवर वंदू शांत चित्त, संसार देह भोगन विरक्त। ८
जय मौन धार मुनि तप करत, जय कर्म काठ सब ही जरंत;
जय आनंदकंद विधानरूप, जय ध्यावत गुरु आतमस्वरूप। ९
संसार कष्ट काटो मुनींद्र, तुम वर्ण नमः सब देव इन्द्र,
जय मुनिवर वंदूं कर्म काट, शिवनारि वरन को करत ठाठ। १०
मैं अल्प मती अज्ञान बुद्धि, प्रभु क्षमा करो जो हो अशुद्धि
रघुवर सुत वंदत शीश नाय, श्रीगुरु के गुण गाये बनाय। ११

(धत्ता छंद)
मुनि सह गुणधारं, जग-उपकारं, कर भवपारं, सुखकारं;
कर कर्म जु नाशा, आतमशासा, सुख परकाशा, दातारं।
ॐ ही श्री अकंपनाचार्यादि सातसौ मुनिभ्यः महार्घ्यं नि०

(दोहा)
भक्तिभाव मन लायकर, पूजे वांचे जोय;
बाबुलाल सु स्वर्ग पद, निश्चय ताको होय ॥
|| इत्याशीर्वादः, पुष्पांजलिं क्षिपेत् ॥

Source: श्री जिनेन्द्र पूजा संग्रह, सोनगढ़

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