अजित जिनेश्वर साँचे ईश्वर, नमूँ नमूँ मैं अविकारी |
मोह तिमिर हर ज्ञान दिवाकर, शोभे मूरति अति प्यारी || टेक ||
स्वाश्रय से ही मोह जीतकर, परम जितेन्द्रिय आप हुए |
ध्यान मग्न हो घाती कर्म तज, तीन लोक के नाथ हुए ||
धर्म तीर्थ का किया प्रवर्तन सब ही को आनंदकारी || १ ||
हे स्वामिन ! जो तुमको जाने द्रव्य और गुण पर्यय से |
सो जाने अपना शुद्धात्म मोह दूर भगता उससे ||
प्रभु सम ही हो जावे वह, सहज मुक्ति का अधिकारी || २ ||
कल्पवृक्ष अरु चिंतामणि ये, पुण्य पदारथ इक भव में |
किंचित कुछ सामग्री देते, नहीं सहायक शिवमग में ||
किन्तु जिनेश्वर भक्ति तेरी निश्चय शिवसुख दातारी || ३ ||
हे परमेश्वर ! यही भावना, तुम सम जाननहार रहूँ |
नहीं प्रयोजन पर से किंचित, सहज तृप्त अविकार रहूँ ||
परम अहिंसा धर्म जगत में, जयवन्तो मंगलकारी || ४ ||
Artist: बाल ब्र. रविंद्र जी 'आत्मन’