श्री सोलहकारण पूजन । Shree Solahkaran Pujan

श्री सोलहकारण पूजन

(पं. द्यानतरायजी कृत)

(अडिल्ल)

सोलह कारण भाय तीर्थंकर जे भये ।
हरषे इन्द्र अपार मेरु पै ले गये ।।
पूजा करि निज धन्य लख्यो बहु चावसौं ।
हमहू षोडश कारन भावैं भावसौं ।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि ! अत्र अवतरत अवतरत, संवौषट्, इति आह्वाननम् ।
ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धयादिषोडशकारणानि ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः, इति स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि ! अत्र मम सन्निहितानि भव भव वषट् इति सन्निधिकरणम् ।

(चौपाई आँचलीबद्ध)

कंचन-झारी निरमल नीर, पूजों जिनवर गुण-गम्भीर ।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।
दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर-पद-पाय।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धि-विनयसम्पन्नता-शीलव्रतेष्वनतिचार-अभीक्ष्णज्ञानोपयोग - संवेग-शक्तितस्त्याग-तपः साधुसमाधि-वैयावृत्यकरण-अर्हद्भक्ति-आचार्यभक्ति- बहुश्रुतभक्ति-प्रवचनभक्ति-आवश्यकापरिहाणि-मार्गप्रभावना-प्रवचनवात्सल्येति तीर्थंकरत्व-कारणेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

चन्दन घसौं कपूर मिलाय, पूजौं श्री जिनवर के पाय।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।दरश…।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

तन्दुल धवल सुगन्ध अनूप, पूजौं जिनवर तिहुँ जग-भूप।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।दरश…।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धयादिषोडशकारणेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।

फूल सुगन्ध मधुप-गुंजार, पूजौं जिनवर जग-आधार ।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।दरश…।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

सदनेवज बहुविधि पकवान, पूजौं श्रीजिनवर गुणखान।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।
दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर पद-पाय।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

दीपक-ज्योति तिमिर छयकार, पूजूँ श्रीजिन केवलधार।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।दरश…।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धयादिषोडशकारणेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

अगर कपूरगन्ध शुभ खेय, श्री जिनवर आगे महकेय ।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।दरश…।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

श्रीफल आदि बहुत फलसार पूजौं जिन वांछित-दातार।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।दरश…।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धयादिषोडशकारणेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

जल फल आठों दरब चढ़ाय, ‘द्यानत’ वरत करों मनलाय।
परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।।दरश…।।

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।

जयमाला

(दोहा)

षोडश कारण गुण करै, हरै चतुरगति वास ।
पाप-पुण्य सब नाशके, ज्ञान-भान परकाश ॥

(चौपाई)

दरशविशुद्धि धरे जो कोई, ताको आवागमन न होई।
विनय महाधारै जो प्राणी, शिव-वनिता की सखी बखानी॥
शील सदा दृढ़ जो नर पालै, सो औरन की आपद टालै।
ज्ञानाभ्यास करै मनमाहीं, ताके मोह-महातम नाहीं॥
जो संवेग-भाव विसतारै, सुरग-मुकति-पद आप निहारै।
दान देय मन हरष विशेखै, इह भव जस पर भव सुख देखै॥
जो तप तपै खपै अभिलाषा, चूरै करम-शिखर गुरु भाषा।
साधुसमाधि सदा मन लावै, तिहुँ जग भोग भोगि शिव जावै॥
निश-दिन वैयावृत्य करैया, सो निहचै भव-नीर तिरैया।
जो अरहंत भगति मन आनै, सो जन विषय-कषाय न जानै॥
जो आचारज-भगति करै है, सो निर्मल आचार धरै है।
बहुश्रुतवन्त-भगति जो करई, सो नर संपूरन श्रुत धरई॥
प्रवचन-भगति करै जो ज्ञाता, लहै ज्ञान परमानन्द-दाता।
षट् आवश्यक काल जो साथै, सो ही रत्नत्रय आराधै॥
धरम-प्रभाव करै जे ज्ञानी, तिन शिव-मारग रीति पिछानी।
वत्सल अंग सदा जो ध्यावै, सो तीर्थंकर पदवी पावै॥

ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यो जयमालापूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

(दोहा)

एही सोलह भावना, सहित धरै व्रत जोय।
देव-इन्द्र-नर-वंद्य-पद, ‘द्यानत’ शिव-पद होय॥

पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्

Artist: Pt. Dyanatray Ji