श्री जिनवर का मंगल शासन, सहजपने स्वीकार हमें | Shree Jinvar Ka Mangal Shaasan

श्री जिनवर का मंगल शासन, सहजपने स्वीकार हमें |
श्री गुरुवर का शुभ अनुशासन, सहजपने स्वीकार हमें || टेक ||

वस्तु स्वरुप समझना है, भेदज्ञान उर धरना है |
देहादिक से भिन्न शुद्ध, आतम का अनुभव करना है ||
रत्नत्रय ही सुख का साधन, सहजपने स्वीकार हमें || 1 ||

पर द्रव्यों का दोष नहीं है, दुःख का कारण मोह सही है |
व्यर्थ भटकना है बाहर में, अपना सुख अपने में ही है ||
ज्ञानानन्दमयी निज आतम, सहजपने स्वीकार हमें || 2 ||

सर्व विकल्प अकिंचित्कर हैं, मूढ़ व्यर्थ बोझा ढोता है |
आर्तध्यान कितना ही कर लो, जो होना है वह होता है ||
वस्तु का स्वाधीन परिणमन, सहजपने स्वीकार हमें || 3 ||

हो सम्यक् पुरुषार्थ जीव का, कारण सर्व सहज मिलते |
भायें सम्यक् तत्त्व भावना, सुगुण प्रसून सभी खिलते ||
उदासीनता ही आनंदमय, सहजपने स्वीकार हमें || 4 ||

वीतरागता श्री जिनवर की, अब आदर्श हमारा है |
अहो-अहो ! समभावी गुरुवर, का ही हमें सहारा है |
मोही जग तो अशरण ही हैं, सहजपने स्वीकार हमें || 5 ||

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

Singer: @Asmita_Jain

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