श्री जिन ऐसा समझाते | Shree Jin Aisa Samjhate

श्री जिन ऐसा समझाते…

आओ तुम्हें ध्रुवधाम दिखा दूँ… दिखला दो न ।
चिदानंद रस पान करा दूँ . करवा दो न |
अंतर के चैतन्य गगन में, शाश्वत सुख की खान दिखा दूँ… दिखला दो न ||टेक ||

छोड़ो पाप कर्म को अब तुम, पुण्य कर्म अपनाओ।
हिंसा आदि पाप छोड़, व्रत संयम में चित लाओ ।।
ध्रुव में नहिं आते ऐसे, आते हैं फिर वो कैसे?
ठहरो तुमको समझा दूँ … समझा दो न || १ ||

पुण्य-पाप दोनों बंधन के कारण, जिनवर कहते ।
शुभ से स्वर्ग भले होता पर भव-बंधन नहिं कटते ।
धर्म नहीं होता शुभ से, होता है फिर वो कैसे?
ठहरो तुमको समझा दूँ . समझा दो न ||२||

जो शुभ से बंधन होता तो, ज्ञानी क्यों शुभ करते?
व्रत संयम गुप्ति चरित्र षट् आवश्यक आचरते ।।
शुभ में नहिं कोई पाप है, मिटता भव संताप है।
देखो जिन क्या समझाते . . समझा दो न || ३ ||

अशुभ भाव से बचने हेतु ज्ञानी को शुभ आता ।
पर उसमें तन्मय नहीं होते रहते उसके ज्ञाता ।।
दृष्टि तो ध्रुव में धरते, राग रहित ध्रुव में रहते।
श्री जिन ऐसा समझाते…समझा दो न ॥४॥

रंग राग से भिन्न भेद से भी जो भिन्न निराला ।
उसमें तन्मय होकर पी लो, निज अमृत का प्याला ॥
निज आश्रित परिणाम है, शाश्वत सुख का धाम है।
शाश्वत सुख की खान गुफा में ।।
आओ चलो ध्रुवधाम गुफा में… चलो चलें न।
मुक्ति श्री मिलती ऐसे… फिर आओ न।।५।।

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