करें तपस्या मन मानी, जे देखो बाहुबली स्वामी।। टेक॥
ऋषभ के पुत्र भरत के भैया, मात सुनन्दा के कुँअर कन्हैया।
पोदनपुर के राज रखैया, मान भरत के भंग करैया।।
पर थे अन्तर के ज्ञानी, जे देखो बाहुबली स्वामी ।।1।।
भाई बन्धु वैभव सुख माया, चरम शरीरी सुन्दर काया।
लख नश्वरबिजली सम छाया, सब तज कर मुनि पद मन भाया।। खड़गासन हो गये ध्यानी, जे देखो बाहुबली स्वामी ।।2।।
बारह मास खड़े तप कीना, अन्न जल त्याग महाव्रत लीना।
बेले लिपटी मोह भयो छीना, अन्तर अनुभव का बल दीना ।।
तुरत भये केवलज्ञानी, जे देखो बाहुबली स्वामी ।।3।।
‘गोविन्द’ बाहुबली को ध्याओ, इनकी भक्ति कर हर्षाओ।
अपनी ज्ञान ज्योति चमकाओ, तो तुम आत्म बली बन जाओ।।
तारण तरण मुकति गामी, जे देखो बाहुबली स्वामी ।।4।।
रचयिता:- श्री गोविन्दराम जी