षट्आवश्यक
जिनवरपूजा मंगलकारी, गुरु उपासना आनंदकारी।
स्वाध्याय सद्ज्ञान प्रकाशे, संयम से सब दुःख विनाशे।।१।।
तप सब कर्म नशावनहारा, उत्तमदान सर्व सुखकारा।
षट् आवश्यक नित पालीजे, धर्माराधन में चित्त दीजे।।२।।
रचयिता:- बा.ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी