शासन ध्वज लहराओ मारा साथी,
पञ्च कल्याणक रचाओ म्हारा साथी।
आओ रे आओ , आओ म्हारा साथी,
जीवन सफल बनाओ म्हारा साथी ॥
स्वर्गपुरी से सुरपति आये, अनेकान्तमय ध्वज ले आये।
स्याद्वाद का रङ्ग भरकर, सबका संशय तिमिर मिटाये।
परिणति में लहराओ म्हारा साथी ॥१॥
मङ्गल स्वस्तिक चिह्न बनाओ, चार गति का दुःख नशाओ।
शुद्धातम को लक्ष्य बनाकर, भेदज्ञान की ज्योति जलाओ।
मोक्ष महल में आओ म्हारा साथी ॥२॥
गुण अनन्तमय निर्मल आतम, अनेकान्त कहते परमातम्।
धर्म युगल जो रहे विरोधी, वे भी रहते हैं निज आतम्।
निज स्वरूप रस पाओ म्हारा साथी ॥३॥
मंगल स्वर्ण-कलश ले आओ, इस पर स्वस्तिक चिह्न बनाओ।
माता के कर कमलों द्वारा, मंगल वेदी पर पधराओ।
मङ्गल कलश दुराओ म्हारा साथी ॥४॥