सर्वज्ञता का धाम हो | Sarvagyta Ka Dhaam Ho

(तर्ज : चौदहर्वी का चाँद हो)

सर्वज्ञता का धाम हो, या ज्योतिवान हो,
तुम तो प्रभु तुम्हीं में, दे दीप्यमान हो।
सर्वज्ञता का धाम हो ऽऽ ॥

तीन छत्र सिर पे तेरे, सुन्दर सजे हुए -2,
भामंडल की प्रभा से, भविजन खिले हुए।
चर्चाएं ध्रुवधाम की तुम तीर्थनाथ हो॥(1)

मूरत है तेरी शान्तिमय, गणधर करें नमन -2,
शत इन्द्रों के भी देख तुझे, गदगद हुए हैं मन।
पावेंगे कब तुम्हें प्रभु तुम शुद्ध ज्ञान दो ॥(2)

हम अपनी भूल से सभी, व्याकुल महा दुखी - 2,
धर्म ही का ध्यान करके, हो जायेंगे सुखी।
कर्मों का नाश हो मेरे और मुक्ति वास हो ॥(3)