सम्यक् आत्मनियंत्रण संयम। परमानंद मय उत्तम संयम।।
मंगलमय लोकोत्तम संयम | शरण अनन्य जीव को संयम।।
ज्ञान मात्र निज सीमा जानो। रागादिक से भिन्न पिछानो।।
ज्ञाता रूप ही अनुभव करना। ज्ञानानंद में तृत्त सु रहना।।
पंचेन्द्रिय के विषय त्यागना। मन में भी नहीं चिंतन करना।।
ये ही इन्द्रिय संयम सुखमय | सब जीवों को करता निर्भय।।
घट्कायिक जीवों की हिंसा। त्यागें पालें सदा अहिंसा।।
प्राणी संयम सो हितकारी। महापुरुष धारें सुखकारी।।
संयम भाव दीनता नाशे। संयम से प्रभुता परकाशे।।
साक्षात् मुक्ति का कारण। संयम सकल करो तुम धारण।।
जो शक्ति होवे न हीं भाई। संयम देश धरों सुखदाई।।
पाँच अणुब्रत धारण करना। गुणब्रत और शिक्षात्रत धरना।।
अंत समय संन्यास मरण कर। पावे देवगति मंगल कर।
तहँ तैं नर हो मुनिपद धारे। दुखमभय आवागमन निवारे।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी