संत/सन्त वंदन/वन्दन
ओ मानवता के केन्द्र बिन्दु
नश्वर जग के शाश्वत प्रकाश
ओ नग्न अहिंसा नग्न सत्य
है भौतिकता के महानाश
हम संसारी तू मुक्तिदूत
तुम पुण्य पूत हम महापाप
हम हैं जड़ता के मूर्त्त रूप
चेतन महान चेतन विराट
हम चूम रहे जग की छाया
तुम छोड़ चले जग की माया
जग तुझे चूमने को चलता
हम चूम चले जग की काया
तुम लक्ष वीण के एक तार
तुम लक्ष-लक्ष के एक राग
तुम कोटि-कोटि के हिय-प्रसून
तुम स्वयं सिद्ध से साम्यवाद
तेरे मानस में सत्यवास
तेरी वाणी में विश्व क्षेम
निज चिंतन तेरी निधि असीम
तुझको न अपेक्षित मुक्त हेम
हे महात्याग! हे महाभाग !!
कितना अनंत तेरा प्रयाण
तेरे पुनीत युग चरणों में
शत शत प्रणाम शत शत प्रणाम।
रचयिता: आ० बाबू युगल जी ‘जुगल’