संसार स्वरूप | Sansaar/Sansar Swarup

या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया।

कोई निर्धन धन बिन दुखिया, दीन वचन मुख बोले ।
भगत फिरे संसार के मांही, धन की चाह में डोल ।। या…

दौलत के भण्डार भरे हैं, तन में राग समाया ।
निशिदिन कड़वी खाय दवाई, कहा करे नहीं काया ।। या…

तन निर्मल और धन को पाकर, फिर भी दुखिया होवे ।
पूजत फिर कुदेवन को और, पुत्र एक नहीं हावे । या…

तन धन और पुत्र को पाकर, फिर भी हुआ दुखारी ।
पुत्र नहीं आज्ञा को पालें, घर में कर्कश नारी। या…

तन धन और सुलक्षण नारी, पुत्र है आज्ञाकारी ।
फिर भी दुखिया रहे जगत में, हुये न छतर धारी । या…

चक्रपती और छत्रपति भये पर नारीसंग मोहे ।
आशा-तृष्णा धरी न मन की फिर भी सुख को रोये । या…

‘छोटेलाल’ वही है सुखिया, जो इच्छा का त्यागी ।
राग-द्वेष तज धरे मुनिव्रत, हुये पर वैरागी ।। या…

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