सत्संगति ही शिवसुखदाता, सत्संगति सद्भाग्य विधाता।
सत्संगति सन्मार्ग दिखावे, सत्संगति सु विवेक जगावे।।
सत्संगति से बढ़े प्रतिष्ठा, सत्संगति से होय पूज्यता।
सत्संगति सब दोष मिटावे, सत्संगति सब पाप नशावे।।
सत्संगति सब व्यसन छुड़ावे, सत्संगति दुर्ध्यान मिटावे।
सत्संगति सब गुण प्रकटावे, सत्संगति निर्मलता लाबे।।
सत्संगति में निश-दिन रहना, सत्संगति को कभी न तजना।
भाव तुम्हारे निर्मल होंगे, ज्ञानादिक गुण विकसित होंगे।।
धर्म ध्यान में चित्त लगेगा, जीवन तब आदर्श बनेगा।
रत्लत्रय के पात्र बनेंगे, मुक्ति मार्ग में तभी बढ़ेंगे।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी