सम्यक् ज्ञान के आठ अंग
अक्षर शुद्ध उच्चारो, अर्थ भी शुद्ध विचारो ।
उभयशुद्धि सुखकारी, कालाध्ययन हितकारी ।।1।।
अवधारण उपधान, करो योग्य बहुमान ।
नाम गुरु न छिपाओ, योग्य विनय प्रगटाओ ।।2।।
आठ अंग नित भजना, संशयादि को तजना ।
पाओ सम्यग्ज्ञान, तब ही हो कल्याण ।।3।।
रचयिता-: बा.ब्र.श्री रवींद्र जी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी