सम्यक्चारित्र सुखकारी । Samyakcharitra Sukhkari

सम्यक्चारित्र

सम्यक्चारित्र सुखकारी, साम्यभाव नित हितकारी ।

मोह क्षोभ बिन पहिचानो, थिरता ही चारित जानो ।।1।।

स्व-पर दयामय सुखकारी, व्रत तप संयम व्यवहारी ।

विषय कषायों को टालो, सम्यकचारित्र तुम पालो ।।2।।

साक्षात् मुक्ति का कारण, सर्व दु:खों का करे निवारण ।

मानव भव का ये ही सार, इससे ही होवे भव पार ।।3।।

Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्‌’
Source: बाल काव्य तरंगिणी

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