Samyagdrishti(4th Gunasthan) aur Kevalgyaani(13th Gunasthan)

Jaane hue kaa hi shraddhan hota hai, to kya inke shraddhan me antar hai?
Aanand me kaisa antar hai ?
Ise poorn aagam aur adhyatm dono ki drishti se vicharkar uttar deve.

Edit 1: Jaane hue ka hi shraddhan hota hai samyagdriti aatma ko pratyaksh evam poorn nahi jaante, keval gyaani jaante hai. To antar nahi aayega ?

Thoda vistar me uttar de. Dhanyawaad

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श्रद्धान की अपेक्षा तो कोई अंतर नहीं, आनंद की अपेक्षा बहुत अंतर है |
इन post को देखें -

Jaane hue ka hi shraddhan hota hai samyagdriti aatma ko pratyaksh evam poorn nahi jaante, keval gyaani jaante hai. To antar nahi aayega ?
Nahi aayega to kyun ?

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कोई क्षायिक सम्यकदृष्टि राजा युद्ध करता हो और सिद्ध भगवान के श्रद्धान में कोई फर्क नही है,

यहाँ आत्म प्रदेशो को जानना ये ज्ञान गुण का परिणमन है इससे श्रद्धा गुण से कोई संबंध नही है,
अगर आनंद की बात करे तो श्रद्धा गुण संबधी केवली और छद्मस्त का आनंद समान है।

kaise ?

क्योंकि केवली और छद्मस्त दोनों क्षायिक सम्यकदृष्टि है।
इसी लिए 11-12 वे गुणस्थान वाले छद्मस्त जीव को पूर्ण सुखी कहा है।
13 वे में ज्ञान क्षायिक होने से ज्ञान की अपेक्षा ये अनंत सुखी हो गए

किसी अपेक्षा से ऐसा हम कह सकते हैं की दोनों के क्षायिक सम्यक श्रद्धान में अंतर भी हैं। इसके लिए जिनवाणी में दोनों निम्न कथन हैं:
अवगाढ़ सम्यकदर्शन - श्रुतकेवली का सम्यकदर्शन अवगाढ़ सम्यकदर्शन कहलाता है।
परमावगाढ़सम्यकदर्शन - केवली का सम्यकदर्शन परमावगाढ़ सम्यकदर्शन कहलाता है।

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यह कथन श्रद्धा के बदले ज्ञान गुण को मुख्य करके कथन किया ऐसा लग रहा है।

Yes, this is because of gyan

Its too good to see such questions springing up in the threads!!


जाने हुए का ही श्रद्धान होता हैं परन्तु श्रद्धान की मात्र २ ही स्तिथि होती हैं - right (सम्यक) or wrong (मिथ्या) अतः श्रद्धान में प्रत्यक्ष / परोक्ष ज्ञान के कारण कोई अंतर आना संभव नहीं हैं।

[IMP] परोक्ष ज्ञान पूर्वक भी वस्तु का निर्णय, प्रत्यक्ष ज्ञान के equivalent हो सकता हैं। ज्ञान & श्रद्धान are two different गुण with different characteristics.

Above references are from रहस्य पूर्ण चिट्ठी (I would recommend reading it for more clarity).

On other side, there are few different states of श्रद्धान like क्षोपशमिक सम्यक्त्व, मिस्र सम्यक्त्व but that are no way due to प्रत्यक्ष / परोक्ष ज्ञान (because परोक्ष ज्ञानधारी को भी निर्दोष क्षायिक सम्यक्त्व हो सकता हैं).

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Waise mera prashn yahi prakaran padh kar utha tha.

Hum aisa kehte hai ki shraddha 2 quality ki hoti hai, lekin usme quantity ka fark nahi hota kya? Mujhe pata hai ki quantity ka bhed hone ke liye kshyopsham roop awastha honi chahiye par agar kisi vastu ko aap aagam se jaane aur khud completely jaane in dono me antar hai aur jaane hue ka hi shraddhan hoga is hisab se unke shraddhan me antar hoga aur ye baat param avgad samyaktva ke tark se poori tarah proove hoti hai fir to.

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Haan kyunki jaane hue ka shraddhanjali hua fir to shraddhan me bhi antar hua.?

अवगाढ़ सम्यकदर्शन - परमावगाढ़सम्यकदर्शन ऐसे दो केवल नाम भेद ही है क्या? ज्ञान की अपेक्षा नाम प्राप्त होने परभी श्रद्धागुण की परिणीति से देखे तो क्या कोई अंतर होगा?

हमें लगता है कि सम्यक्त्व रूप परिणमन तो दोनों का होनेसे श्रद्धा परिणति के सम्यक्त्वरूप में अंतर नहीं परंतु परिणति की अवगाढ़ता में अंतर है।