केवलज्ञान संबंधी प्रश्न

That’s why:

  • before केवलज्ञान, पूर्ण सुख।
  • after केवलज्ञान, अनंत सुख।

Referring आचार्य कुंदकुंद, प्रवचनसार गाथा (59) - 5 reasons supporting “प्रत्यक्षज्ञान ही पारमार्थिक सुखरूप हैं”

Check out 3rd reason in the image below - (३) समस्त वस्तुओंके ज्ञेयाकारोंको सर्वथा पी जानेसे परम विविधतामें व्याप्त होकर रहनेसे ‘अनन्त पदार्थोंमें विस्तृतहै,’ इसलिये सर्व पदार्थोंको जाननेकी इच्छाका अभाव है (और इसप्रकार किसी पदार्थको जाननेकी इच्छा न होनेसे आकुलता नहीं होती);

Direct link to the source: Pravachansar (Hindi) (Original language). Page: 103.

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