समयसार भक्ति (रे समयसार की पूजा) | Samaysar Bhakti

समयसार भक्ति

रे समयसार की पूजा, सा काम नहीं है दूजा।
है समयसार जिनवाणी, है कुन्दकुन्द की वाणी ।। १ ।।

है समयसार शुद्धातम, है समयसार परमातम ।
दूजा न इसका सानी, यह आतमराम कहानी।। २ ।।

यदि चाहो निज हित करना, भवि भव से पार उतरना ।
तो समयसार को पढ़ना, उसमें ही रमना-जमना।।३।।

है समयसार निज आतम, है समयसार परमागम ।
यह अपनी ही शैली में, नवतत्त्वों का प्रतिपादन|| ४ ||

है अद्भुत इसकी शैली, है अद्भुत इसकी महिमा।
है विषय-वस्तु भी अद्भुत, उसकी न कोई सीमा।।५।।

यह असीम आतम का, प्रतिपादक ग्रन्थ महा है।
इसमें मुक्ति का मारग, ही सहज सुबोध कहा है।।६।।

आत्मख्याति टीका में, अमृत ने अमृत घोला।
अधिक कहें क्या भाई! इसकेरग-रग को खोला।।७।।

तात्पर्यवृत्ति टीका में, जयसेन सूरि ने सबको।
अत्यन्त सरल शैली में समझाया अबुधजनों को।।८।।

स्वामीजी ने प्रवचन कर इसके अन्तर को खोला।
सहज देश भाषा में समझाया सहज परोसा।।९।।

सब पढ़ो ध्यान से इसको, सब गुनो ध्यान से इसको।
होगा कल्याण सभी का, इसमें संशय न समझो।।१०।।

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