सहज अबाध समाध धाम तहाँ
सहज अबाध समाध धाम तहाँ, चेतन सुमति खेलैं होरी ।। टेक ॥।
निजगुन चंदनमिश्रित सुरभित, निर्मल कुंकुम रस घोरी ।
समता पिचकारी अति प्यारी, भर जु चलावत चहुँ ओरी ।। १ ।।
शुभ संवर सुअबीर आडंबर लावत भरभर कर जोरी।
उड़त गुलाल निर्जरा निर्भर, दुखदायक भव थिति टोरी || २ ||
परमानन्द मृदंगादिक धुनि, विमल विरागभावधोरी ।
‘भागचन्द’ दृग - ज्ञान - चरनमय, परिनत अनुभव रंग बोरी ॥ ३ ॥
रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन
Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )