मेरे जीवन को मत तोलो अरे विश्व!
मेरा पथ छोड़ो, मत अपना अवगुंठन खोलो
मेरे जीवन को मत तोलो।।टेक।।
मेरी अक्षय सत्ता है रे, मैं हूँ अमरपुरी का वासी
सुधा-सिन्धु मेरा जीवन है, नहीं मुक्ति का मैं प्रत्याशी
मर्त्य लोक का मानव करता, मेरे जन्म-मृत्यु की बातें
किन्तु अरे वे तो हैं, मेरे जीवन की श्वासें-प्रश्वासे
अज्ञ विश्व ! इस पावन से तुम नहीं असंयत भाषा बोलो।
मेरे जीवन को मत तोलो।।1।।
अरे विश्व! वह तुमने केवल देखी होगी हिमगिरि गुरुता,
और अधिक कुछ देखी होगी आसमान की रे अनन्तता
मेरी छोटी-सी छाती में तेरा आसमान प्रतिबिंबित
तोल-तोलकर मुझे थक चुके, अतः खड़े ये हिमगिरि लज्जित
मैं हूँ शक्ति पुंज, नहिं मुझसे अरे तुच्छ! मुँह लगकर बोलो।
मेरे जीवन को मत तोलो।।2।।
कितनी बार अरे! देखो तुम, बढ़-बढ़कर मुझसे टकराये
आसमान में टिड्डी-दल-से, तुम मेरे खेतों पर छाये
पर क्या तुमने सोचा है रे! कितनी गहरी कब्र खोद लो
अमर मरेगा क्या, तुम चाहे धरती का पाताल शोध लो
अविनश्वर की नश्वरता का यत्न सफल कब होगा बोलो?
मेरे जीवन को मत तोलो।।3।।
जिसकी तुम पूजा करते, वह लक्ष्मी मेरा पानी भरती
और तुम्हारा पुण्य-देवता मेरे घर का जागृत प्रहरी
अरे! पाप की चर्चा छोड़ो, वह मेरे घर से निष्कासित
कभी-कभी वह कर जाता है मेरे चरणों को प्रक्षालित
धंसक जाएगी पुण्य-पाप की धरा अरे! मेरी जय बोलो।
मेरे जीवन को मत तोलो।।4।।
तुमने भेजी अरे! आँधियाँ मेरी गहराई को पाने
लगे अरे चिंता के बादल मेरी छाती पर मंडराने
आये क्लेश, विषाद आ गये, घृणा,निराशा, घोर विषमता
चले गये ये लज्जित होकर ध्रुव का लगा न पाये पत्ता
अरी आँधियों! अपनी इन नापाक हरकतों को अब धोलो।
मेरे जीवन को मत तोलो।।5।।
तुमने भेजी महाव्याधियाँ मुझे मिटाने रे ओ उन्मन्!
सूखा रक्त, नसें भी सूखी, और हड्डियों का ढांचा तन
फेल हो गया हृदय कभी तो, कभी हृदय का भीषण स्पंदन
सड़ कर सारी देह बन गई अरे! इल्लियों का जन्म स्थल,
शर्म,शर्म! पर ढूंढ सके नहिं तुम चिन्मय की काया बोलो।
मेरे जीवन को मत तोलो।।6।।
रे! लाखों ही श्मशानों में वे तेरी खाकों के पर्वत
तेरी रूपावलियों के ये दृश्य कर रहे हैं नतमस्तक
रे अबोध! तूने सोचा था, खाक हुई चेतन की हस्ती
ओ नादान! चला चेतन तो अपनी नई बसाने बस्ती
ओ अंगारों! धधक-धधक तुम अपनी कब्र स्वयं ही खोलो। …
मेरे जीवन को मत तोलो।।7।।
रूप बदल कर फिर तुम आये, छाये अरे! हर्ष के बादल
पाई देह जहाँ युगपत् था रूप और यौवन का संगम अ
रे! चमन-से परिवारों की, कोमल किसलय-सी संतानें
अरे रूप की उर्मि रमणियां स्वर लहरी में भरती तानें
बोधि-पुंज को छल न सकी, ओ छलनाओं! जी भर डोलो।
मेरे जीवन को मत तोलो।।8।।
Artist: श्री बाबू जुगलकिशोर जैन ‘युगल’ जी
Source: Chaitanya Vatika