सदा काल प्रभु पूरा, प्रभु है सर्व प्रकार से पूरा || टेक ||
असंख्यात प्रदेश जगमगें, नित्य उदित चित् सूरा |
स्वयं सिद्ध गुण भरे लबालब, किंचित् नहीं अधूरा || 1 ||
दर्शन पूरा, ज्ञान है पूरा, सुख अनंत है पूरा |
चारित्र पूरा, विरज पूरा, है प्रभुत्व नित पूरा || 2 ||
द्रव्य से पूरा, क्षेत्र से पूरा, काल भाव से पूरा |
आदि-मध्य-अवसान न दीखे, है सदैव ही पूरा || 3 ||
सहज पूर्ण प्रभु है निश्चय से, है व्यवहार से पूरा |
लेन-देन सम्बन्ध न पर से, स्वयं स्वयं में पूरा || 4 ||
भव में पूरा शिव में पूरा, सदा अकेला पूरा |
पूर्ण-अपूर्ण विकल्प न जिसमें, सहजपने है पूरा || 5 ||
भव-भव में रुलते दुख पावे, जिन नहीं देखा पूरा |
मुक्त भये देखा जिन पूरा, अद्भुत चैतन्य पूरा || 6 ||
निर्वान्छक हो गया सहज, अनुभूति में आया पूरा |
ध्येय रूप परिपूर्ण विराजे, ध्यान में वर्ते पूरा || 7 ||
अपना वैभव दीखे पूरा, और लगे सब चुरा |
प्रगटा पूर्ण स्वभाव आनंदमय, सब विभाव भय चूरा || 8 ||
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’