सात शतक मुनियों की रक्षा, कीनी मुनि विष्णु कुमार।
मुनि रक्षा का संकल्प है रक्षाबंधन त्योहार॥
श्री अकंपनाचार्य की गाथा, गाता है ये संसार।
मुनि रक्षा का संकल्प है रक्षाबंधन त्योहार॥टेक॥
राजा बलि ने द्वेष पूर्ण हो, यज्ञ की अग्नि जलवाई।
अग्नि के धुंए दुर्गंध ने हानि, मुनि संघ को पहुंचाई॥
विष्णु कुमार मुनि तब पहुंचे, वहां वामन वेश को धार ॥1॥
दो डग रखकर ही वामन ने, सारी धरा को माप लिया।
तीजा पग मैं रखूं कहां, यह राजा बलि से प्रश्न किया॥
क्षमा मांग तब राजा बलि ने, गलती कर ली स्वीकार ॥2॥
देवों ने अग्नि बुझाकर मुनियों, के उपसर्ग को दूर किया।
श्रावकों ने नवधा भक्ति से, फिर खीर बना आहार दिया॥
रक्षा सूत्र हाथ में बांधे, ये प्रण कीना स्वीकार ॥3॥