रे मन मेरा, तू मेरो कह्यौ मान मान रे || टेक ||
अनंत चतुष्टय धारक तू ही, दुःख पावत बहुतेरा |
भोग विषय का आतुर ह्वै कै, क्यौं होता है चेरा || १ ||
तेरे कारन गति गति माहीं, जनम लिया है घनेरा |
अब जिन चरन गहि ‘बुधजन’, मिटि जावै भव फेरा || २ ||
Artist : कविवर पं. बुधजन जी