राम भरतसों कहैं सुभाइ, राज भोगवो थिर मन लाइ। Ram Bharat so Kahe Su Bhai

राम भरतसों कहैं सुभाइ, राज भोगवो थिर मन लाइ ॥ टेक ॥
सीता लीनी रावन घात, हम आये देखनको भ्रात ॥ राम. ।। १ ।।
माताको कछु दुख मति देहु, घर में धरम करो धरि नेह । राम. ॥ २ ॥
‘द्यानत’ दीच्छा लैंगे साथ, तात वचन पालो नरनाथ ।। राम. ।। ३ ।।

अर्थ: श्री राम अपने छोटे भाई भरत से कहते हैं कि हे भाई! अपना चित्त स्थिर करके इस राज्य का भोग करो।

हम तो भाई को (लक्ष्मण को) देखने को आए थे और रावण ने घात लगाकर सीताजी का हरण कर लिया।

माता को कुछ भी, किसी प्रकार का दुःख न हो, उन्हें कष्ट न पहुँचे इसलिए तुम धैर्यपूर्वक घर में ही प्रेम से रहो।

द्यानतराय जी कहते हैं कि श्री राम ने भाई भरत को आश्वासन दिया कि हे राजन! हे भरत ! अपन/हम दीक्षा साथ लेंगे। इसलिए तुम अभी राज करो/राज सम्हालो और माता के वचन का पालन करो।

रचयिता: पंडित श्री द्यानतराय जी
सोर्स: द्यानत भजन सौरभ

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