पूर्व दिशा सम जननी जिनेश्वर आदीश्वर भगवान
तीर्थनाथ है आदिप्रभुजी पुत्र तेरा अविकार
जय-जय आदिनाथ भगवान॥
ज्ञान को पाया, ज्ञान ही भाया।
निज में अंर्तध्यान किया।
तीन लोक की माता बनकर करुणानिधि को जन्म दिया
रत्न कुक्षी मां तेरे कारण रत्न सुरों ने बरसाये
जन्म समय सुमधुर ध्वनि हो गई इन्द्र के आसन कम्पाये
जय जय आदिनाथ॥१॥
धन्य धन्य है तेरे मुख से सत् सुबोध की धार बहे ।
तत्व स्वरूप बताकर तुमने दुखियों के दुख दूर किये
आओ भाई हम सब मिलकर जग जननी का यश गायें
भगवन सम आत्मा पाने को आदि प्रभु को सब ध्याये ।
जय जय आदिनाथ॥२॥