पुद्गल का क्या विश्वासा, जैसे पानी बीच पताशा।
जैसे चमत्कार बिजली का, और इन्द्र धनुष आकाशा-२॥
झूठा तन धन झूठा यौवन, झूठा है जग वासा-२,
झूठा ठाठ है दुनियां में, झूठा है महल निवासा ॥१॥
एक दिन ऐसा होगा लोगों, जंगल होगा वासा-२,
इस तन पर हल फिर जाएँगे और पशु चरेंगे घासा ॥२॥
इक बार श्री जिन जी का, भजले तू नाम निराला-२,
‘नवल’ कहें क्षण भी न भूलों, जब तक है घट में श्वासाँ ॥३॥
रचयिता:- नवल जी शाह