देवदर्शन विधि
(लावनी)
प्रातः उठकर के णमोकार तुम पढ़ना ।
तत्त्वों का चिंतन कर निज रुप सुमरना ।।
फिर यथायोग्य तन की भी शुद्धि करना ।
धारणकर वस्त्र पवित्र जिनालय चलना ।।1।।
द्वारे पर पानी रखा लखो तुम भाई ।
धो हाथ-पैर निःसही शब्द उच्चरना ।।
जय-जय ध्वनि करते जिनमंदिर में जाना ।
प्रभु सन्मुख भक्ति से तुम शीश नवाना ।।2।।
स्तुति करके प्रभु के गुण चिन्तो भाई ।
देना फिर तीन प्रदक्षिणा मंगलदाई ।।
कर कायोत्सर्ग तुम पाप मैल को धोना ।
फिर शास्त्र सभा में बैठ धर्म को सुनना ।।3।।
अथवा अति प्रीति से तुम खुद ही पढ़ना ।
सुनकर-पढ़कर तुम वस्तुस्वरुप समझना ।।
साधर्मीजन पर बहुत प्रेम दरशाना ।
जिनदर्शन करके भावविशुद्धि बढ़ाना ।।4।।
अन्तर्मुख हो सुखमय निजदर्शन पाना ।
रत्नत्रय पाकर जीवन सफल बनाना ।।
जिनवर का है ये ही उपदेश सुहाना ।
इससे ही बनता जीव स्वयं भगवाना ।।5।।
रचयिता:- बा. ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी
Singer - @Atmarthy_Ayushi_Jain