प्रभु जी, अब न भटकेंगे संसार में।
अब अपनी… हो ऽऽऽ अब अपनी खबर हमें हो गई ।।टेक।।
भूल रहे थे निज वैभव को, पर को अपना माना ।
विष-सम पंचेंद्रिय विषयों में ही सुख हमने जाना ।
पर से भिन्न लखूँँ निज चेतन, मुक्ति निश्चित होगी ।।(1)
महा पुण्य से हे जिनवर अब तेरा दर्शन पाया ।
शुद्ध अतीन्द्रिय आनंदरस, पीने को चित ललचाया ।
निर्विकल्प निज अनुभूति से, मुक्ति निश्चित होगी ।।(2)
निज को ही जानें पहिचानें, निज में ही रम जायें ।
द्रव्य-भाव-नोकर्म रहित हो, शाश्वत शिवपद पायें ।
रत्नत्रय निधियां प्रगटाएं ,मुक्ति निश्चित होगी ।।(3)