सच्चे जैन
प्रभु दर्शन नित करते, रात्रिभोजन तजते ।
पियें छानकर पानी, सुनें सदा जिनवाणी ।।1।।
कभी अभक्ष्य न खाते, जीव दया चित्त लाते ।
सप्त व्यसन के त्यागी, संयम में अनुरागी ।।2।।
वस्तुस्वरूप समझते, शुद्धातम को भजते ।
जाग्रत प्रज्ञा छैनी, वे ही सच्चे जैनी ।।3।।
रचयिता - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’