उसी तरह जब पेट्रोल गाड़ी में डालते हैं और गाड़ी चलाते हैं तो गाड़ी को तो उस समय चलना ही था, बाकी पेट्रोल, चलाने वाला, यह सब लग तो रहा है की निमित्त की दृष्टि से चाहिए लेकिन वास्तव में क्रमबद्ध पर्याय से, पर्याय का योग्ताय रूप से द्रव्य में विद्यमान रहना, और एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं करता, इस प्रिंसिपल से यह सिद्ध होता है कि गाड़ी का चलना अपने आप में स्वतंत्र है। गाड़ी के प्रत्येक परमाणुओं में यह जानकारी पहले से ही विद्यमान थी कि उस समय पर उनको चलना है।
(यह मेरी क्रमबद्ध पर्याय कॉन्सेप्ट की अंडरस्टैंडिंग है। हो सकता है कि मैं गलत हूं।)