क्या वर्तमान में स्वामी जी और अन्य आचार्यों के दिगम्बर मूल सिद्धांतों में या उनके interpretation मे अंतर है?

तो इस बात को आप गलत क्यूं मानते हो ?

मैंने पहले एक कहानी सुनी थी जिसमें एक बकरी बैलगाड़ी की छाया के नीचे थी। जब बैल गाड़ी चली तब बकरी भी चली, बकरी को लगा कि बकरी के चलने से छाया भी चल रही है। बकरी रुकी तब बैलगाड़ी भी रुक गई, छाया भी रुक गई तब बकरी को पक्का विश्वास हो गया कि छाया और बकरी का कनेक्शन जरूर है।

उसी तरह जब हम पेंसिल को उठाते हैं तब हमको लगता है कि हमने पेंसिल उठाई लेकिन उस पेंसिल को तो उस समय उठना ही था । पेंसिल रूपी अजीव द्रव्य में यह information पहले से store थी। मतलब मैं तो निमित्त बना लेकिन मेरा role बहुत passive हुआ ।

क्रमबद्ध पर्याय का अर्थ केवल यह नहीं होता कि हमारी भविष्य की पर्याय ही फिक्स हैं बल्कि यह होता है कि हमारा प्रत्येक विचार भी फिक्स है, क्योंकि केवली ने सब कुछ देखा है, तो प्रत्येक विचार भी क्रमबद्ध है

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